गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

Kaal sarp yog , duration of kaal sarp yog , Effects of kaal sarp yog

 Kaal sarp yog , duration of  kaal sarp yog , Effects of kaal sarp yog                                                                                                                                                                             
                                                                                                      Kaal sarp yog :-

कालसर्प योग :-

हमारे चारों तरफ ये भ्रांतिपूर्ण धारणा बनाई गई है, कि काल सर्प योग जन्म कुंडली मे स्थित एक दोष पूर्ण स्थिति है ,जो हमारे पूर्व जन्म से सम्बंधित अशुभ कर्मों का परिणाम है ।

कालसर्प योग एक बहुत ही कष्ट कारी , समस्याप्रद , तकलीफदेय , अवरोधक और  अशुभ  संयोग होता है।


जी नहीं ये बिल्कुल बे बुनियाद तथा निराधार धारणा है ।

काल सर्प योग जन्म कुंडली में बनने वाली एक सामान्य ग्रहीय स्थिति होती है जिसके बहुत शुभ परिणाम भी हो सकते है ।

आइए काल सर्प योग के विषय मे सटीक और व्यवहारिक पक्ष को समझते है 



                                                                    What is Kaal sarp yog :-

काल सर्प योग क्या होता है :-


काल सर्प योग जन्म कुंडली में बनने वाली एक सामान्य ग्रहीय स्थिति है ,जो किसी की भी जन्म कुंडली मे निर्मित हो सकती है ।दुनियां में सफलतम लोगों की कुंडलियों में भी ये स्थितियां होती है ।

                                                                                                                                      

                                                                         कुंडली मे काल सर्प योग कैसे बनता है :-


जब सभी ग्रह सूर्य , चंद्र , मंगल , बुध , शुक्र , गुरु और शनि  अंशगत (by degree , minute , second) राहु स्थिति राशि से अंश , मिनिट और सैकेंड से अधिक हों तथा केतु स्थित राशि से अंश , मिनिट , सैकेंड से कम पर स्थित हों तो जन्म कुंडली में काल सर्प योग का निर्माण होता है ।

यदि कोई भी ग्रह राहु से कम तथा केतु से अधिक अंश , कला  विकला ( Degree , minute , second) पर स्थित है तो वह स्थिति काल सर्प  योग नहीं मानी जाती ,अतः यहां काल सर्प योग निर्मित नहीं होता है ।

दूसरी बात काल सर्प योग में सभी ग्रह राहु से आगे की राशि मे और केतु से पूर्व की राशि में ही स्थित होने चाहिए । यदि सभी ग्रह राहु से पूर्व की राशि में और केतु से आगे की राशियों में है ,तो ये काल सर्प योग नहीं होता ,चाहे सभी ग्रह अंशवत राहु केतु के मध्य में ही क्यों न हों ।

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काल सर्प योग के प्रकार :-

Types of kaal sarp yog :-


कुंडली मे राहु तथा केतु लग्न से द्वादश भाव तक 12 प्रकार से अपनी स्थिति के अनुसार समस्त सात ग्रहों (सूर्य , चन्द्रमा , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि) को अपने मध्य में कर सकते है ,

अतः 12 types  12 प्रकार के काल सर्प योग को मान्यता प्रदान की गई है ,जो लग्न से द्वादश भाव तक क्रमशः  

अनंत , कुलिक , वासुकी , शंखपाल , पद्म , महापद्म , तक्षक , कर्कोटक ,शंखचूड़ , घातक , विषधर , शेषनाग  है ।

( इस सभी काल सर्प दोष  के विषय मेंअगली पोस्ट्स में विस्तार से उदाहरण के साथ इनके परिणामों की शुभता अशुभता तथा उपायों पर चर्चा करेंगे)



काल सर्प योग अवधि काल  :-

Duration of Kaal sarp yog :-


भारतीय ज्योतिष पद्धति के नियमों के अनुसार जन्म कुंडली मे स्थित सभी ग्रह अपने परिणाम सिर्फ अपनी  दशा अथवा अंतरदशा में देते है अथवा समान संयोग (योग) combination वाले अन्य किसी भी  ग्रह की दशा या अंतरदशा में जो उस ग्रह के समान परिणाम देने में सक्षम हो

इसके अतिरिक्त कोई भी ग्रह कभी भी किसी भी प्रकार का परिणाम जीवन मे कभी भी नहीं देता

इसलिए ये धारणा बनाना कि काल सर्प योग का प्रभाव सम्पूर्ण जीवन भर रहता है अथवा विशेष आयु तक ही होता है बिल्कुल बेबुनियाद है

काल सर्प योग के परिणाम हमें सिर्फ राहु अथवा केतु की दशा ,अंतरदशा में मिलेंगे अथवा इनसे सम्बन्धित अन्य ग्रह की दशा अंतरदशा में अब यदि वह समय 4 वर्ष की आयु में आये या 35 वर्ष की या 65 वर्ष की आयु में परिणाम भी उसी आयु विशेष में मिलेंगे ..



काल सर्प दोष के प्रभाव :-

Effects of kalsarp yog :-


Kaal sarp  yog के प्रभावों को लेकर सभी तरफ डर और भयभीत करने वाली स्थितियां बताई जाती है ।

शिक्षा , कार्यक्षेत्र , वैवाहिक जीवन , सन्तान सुख , सम्पति सुख , वाहन सुख  ,  आदि सभी क्षेत्रों में कल सर्प योग को अवरोधक , बाधक और इनके सुख में कमी या अस्थिरता देने वाला बताया जाता है ।

 ये बातें बिल्कुल निराधार , बेबुनियाद और भ्रांति पूर्ण है ।

जन्म कुंडली में स्थित कोई भी शुभ योग हो अथवा अशुभ दोष या कोई भी ग्रहीय स्थिति , चाहे वह केंद्र त्रिकोण  में बने या त्रिक (6 8 12 भाव) भावों में , चाहे कोई योग या दोष उच्च राशि में हो या नींच राशि में , चाहे ग्रह अस्त हो , वक्री हो या राहु केतु अथवा शनि से सम्बंधित 

सभी स्थितियां जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में चार प्रकार के परिणाम दे सकती है ।

शुभ

अशुभ

तटस्थ

मिलेजुले परिणाम या (शुभ अशुभ दोनो एक साथ)

जन्म कुंडली मे बनने वाले किसी भी मान्य दोष में भी उतने ही शुभ फल मिल सकते है जितने जन्म कुंडली में निर्मित किसी भी मान्य शुभ योग में और किसी भी मान्य शुभ योग में भी उतने ही अशुभ फल मिल सकते है जो किस भी मान्य दोष में मिल सकते है।

क्यों कि किसी भी ग्रह , मान्य योग अथवा दोष के परिणाम बहुत सारे कारण तथा कारकों द्वारा मिलकर तय किये जाते है ।

तथा किसी भी परिणाम को हमारी आवशयकता तय करती है वह हमारे लिए शुभ है अथवा अशुभ या तटस्थ ..


शेष अगले भाग में...


         🍀 कालसर्प योग के शुभ- अशुभ प्रभावों का निर्धारण कैसे होता है ?

            🍀 कालसर्प योग के शुभ प्रभाव क्या क्या होते है?

                        🍀 कालसर्प योग के उपाय तथा निवारण


 Aacharya Upendra shekhar Bhatt

            Whatsapp no :- 9414204610


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