लक्ष्मी योग (lakshmi yog)
● लक्ष्मी योग (lakshmi yog) कुंडली में कैसे बनता है.?
● लक्ष्मी योग के फल
● लक्ष्मी योग /lakshmi yog
(आधुनिक परिवेश तथा परिपेक्ष में व्याख्या)
● निष्कर्ष
⭕ लक्ष्मी योग (lakshmi yog) कुंडली में कैसे बनता है.?
भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में लग्नेश बली हो तथा नवमेश (9th lord) और शुक्र अपनी उच्च या स्व राशि में स्थित होकर केंद्र अथवा त्रिकोण में बैठें हो तो कुंडली में लक्ष्मी योग (lakshmi yog) का निर्माण होता है ...
⭕ लक्ष्मी योग के फल:-
वैदिक शास्त्र में लक्ष्मी योग (lakshmi yog) में जन्म लेने वाला जातक तेजस्वी , निरोगी तथा शक्ति सम्पन्न होता है । वह लक्ष्मी की कृपा का पात्र होता है ..
उसे धन ऐश्वर्य , सम्पत्ति तथा कई वाहनों का सुख प्राप्त होता है ..
वह अपने अधीन कार्य करने वाले लोगों की रक्षा करता है।
वह अच्छे स्वभाव वाली स्त्री के साथ नित्य क्रीड़ा करता है ..
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⭕ लक्ष्मी योग /lakshmi yog
(आधुनिक परिवेश तथा परिपेक्ष में व्याख्या)
जन्म कुंडली के 2 6 10 भाव अर्थ भाव (आय के भाव ) है तथा 3 6 10 11 वृद्धि स्थान होते है ..
जब जन्म कुंडली में कोई भी ग्रह (सूर्य , चन्द्रमा से राहु केतु , शनि तक ) Dba में 2, 3, 6, 10, 11 भावों के संयोग रखता है तो व्यक्ति के आय के साधन बढ़ते है तथा आमदनी , प्राप्तियां दौड़ती चली आती है ..
जब ये संयोग अधिकांश ग्रह अपनी दशा आंतर्दशा में दोहराते है तो जातक का आर्थिक स्तर , आमदनी , रातों रात तेजी से बढ़ती चली जाती है तथा जातक को धन , मान , प्रतिष्ठा , रुतवा , समाज मे स्थान और ऐश्वर्य के साधन प्राप्त होते है ..
⭕ निष्कर्ष :-
समय बदलता है , समाजिक रीतिरिवाज बदलते है , सोच बदलती है , कानून बदलता है व्यक्ति की सोच और समाज के नियम बदलते है तो ज्योतिष के नियम भी हमें आधुनिक परिवेश और परिपेक्ष के अंतर्गत उपयोग औऱ प्रयोग करने होंगे..
तभी हम कुंडली मे सटीक भविष्यकथन तथा मार्गदर्शन कर सकते है।
🙏🙏
Aacharya Upendra Shekhar Bhatt
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"Works at advanced & practical Astrology"
{हिन्दू वैदिक ज्योतिष , जैमिनी ज्योतिष , नाड़ी ज्योतिष और ताजिक system ( वर्षफल पद्धति )
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